जिलाधिकारी साहब ! टूट गई नहर,बह गई फसल, जिम्मेदार कौन ? लाओ सामने
1 min readमहराजगंज/उत्तर प्रदेश
ब्यूरो चीफ ,जनपद महराजगंज
भानु प्रताप तिवारी की रिपोर्ट
महराजगंज । हिंदुस्तान का किसान जिसे अन्नदाता भी कहा जाता है जिसके ऊपर अपने देश का पेट भरने की जिम्मेदारी होती है और वह भी अपनी भूमिका अथक मेहनत से पूरी करने में अपनी जी जान लगा देता है । परंतु जब सरकारी तंत्र ही उसकी मेहनत पर पानी फेरे तो फिर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह किसान पर क्या बीतती होगी। और सरकार देती भी क्या है उसकी अथक मेहनत पूरे परिवार के खून पसीने की कमाई का कुछ हिस्सा मुआवजे के तौर पर देकर अपने आप को धन्य धन्य कह देती है । लेकिन कुछ अधिकारियों के चलते किसान आत्महत्या और उसका परिवार सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो जाता है जी हाँ हम बात कर रहे हैं महाराजगंज जिले के क्षेत्र पंचायत सिसवा की ग्राम सभा बरवा पंडित की । जहां नहर टूटने से खेत जलमग्न हो गए हैं और आश्चर्यजनक रूप से इसकी शिकायत विभाग में करने पर भी विभागीय अधिकारी मौन बैठे हुए हैं देखा जाए तो नहर की देखरेख का काम सिंचाई विभाग के द्वारा होता है और अधिशासी अधिकारी की देखरेख में नहर का रखरखाव और उसका पानी खेतों में छोड़ा जाता है । परंतु इस क्षेत्र के अधिशासी अधिकारी खाऊ कमाऊ की नीति के चलते किसान बर्बाद होने की कगार पर पहुंच रहे हैं । गांव के राम नरेश मिश्र ने बताया कि नहर और खेतों के बीच कोई भी नाला ना होने के कारण के कारण नहर का कटान हो जाता है। जिससे खेतों में पानी भर जाता है और पूरी फसल नष्ट हो जाती है । उन्होंने बताया कि इस संबंध में कई बार अधिशासी अधिकारी को पत्र लिखा जा चुका है परंतु उन्होंने शायद सभी पत्रों को कूड़े के ढेर में डाल दिया है जिससे आज तक नहर की मरम्मत नहीं हो पाई। ग्रामवासी बताते हैं कि नहर निर्माण के समय खेतों को पानी की जाने के लिए नाले का निर्माण किया जाता है। परंतु इस नहर में नाले का निर्माण ना होने के कारण लोग नहर को ही काटकर खेतों में पानी लगाते हैं और उसी कटान ने धीमे धीमे कटान का विकराल रूप ले लिया है । जिस दिन नहर टॉप पर आती है । नहर का पानी खेतों की ओर रुख कर लेता है जिसके कारण तिलहन और दलहन की फसल नष्ट हो रही हैं लोग बताते हैं कि इन क्षेत्रों में तो दाल की फसल लगाना ही लोगों ने बंद कर दिया है। लेकिन इन सब के बाद भी उन लोगों को शत्-शत् प्रणाम है जो इन अधिकारियों के चलते हर साल डूबते हैं और हर साल डूबने के बाद दस परसेंट मुआवजा वह सरकार से लेकर फिर से सरकार पर भरोसा करते हैं। धन्य हैं वे लोग जो बार डूबने के बाद भी सरकार पर भरोसा करते हैं और धन्य है वह सरकार, जो गूंगी और बहरी हो कर उनकी नहीं सुनती है। बल्कि मुआवजे के तौर पर क्लामिटी रिलीफ फंड से एक आदमी को बीस रुपए मुआवजा मिलता है। इससे बड़ी शर्म की बात और क्या है कि इससे उनके जो जानवर हैं, उनके चारे के लिए भी सवा सौ रुपए या डेढ़ सौ रुपए से कम नहीं आता है। अगर आप एक एकड़ की बुआई लें, तो करीब दो हजार से ढाई हजार रुपए लगते हैं और सरकार क्लामिटी रिलीफ फंड में वह मुआवजा 1600 रुपए तय करती है। जहां उसे उपज के 15 से 20 हजार रुपए मिलते हैं, वह ठेका देता है। ” मिट गया मिटने वाला, फिर सलाम आया तो क्या, दिल की बरबादी के बाद उनका पैगाम आया तो क्या। ” आप जा कर वहां देखिए कि लोग क्या कह रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि क्या आज सरकार जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय नमक छिड़केगी। Iजिलाधिकारी साहब ! टूट गई नहर,बह गई फसल, जिम्मेदार कौन ? लाओ सामने