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16/04/2024

DakTimesNews

Sach Ka Saathi

कमीशन खोरी के मामले में नहीं सुधर सकता रायबरेली का जिला चिकित्सालय

1 min read

सुषमा मिश्रा

ब्यूरो

रायबरेली । जिले का कभी सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में गिने जाने वाला द्वारा बेनी माधव सिंह जिला अस्पताल को शायद अब मरीजों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। क्योंकि अस्पताल के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक अब सीधे सीधे धन लालसा में लग गए हैं। बताते चलें कि जिला अस्पताल में कमीशन खोरी की आदतों से छुटकारा दिलाने के लिए वर्तमान जिला अधिकारी नेहा शर्मा ने मार्च माह में समस्त कर्मचारियों का वेतन रोक देने का आदेश दिया था। लेकिन इस आदेश के बाद भी कोई भी फर्क इन चिकित्सकों की कार्यशैली में नहीं दिखाई देता है । जिला अधिकारी की एक मुस्त कार्यवाही पर कुछ चिकित्सकों ने आपत्ति भी जताई थी कि उन्होंने तो अपना पूरा कार्य ईमानदारी से किया हैं परंतु कार्रवाई की गाज उन पर भी गिरी। लेकिन कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है कुछ गिने-चुने चिकित्सक भले ही शासन की मंशा के अनुसार अस्पताल में काम कर रहे हो । लेकिन अधिकांश चिकित्सक अपनी मंशा के अनुसार सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ा रहे हैं । सरकार ने बाहर की दवाएं लिखने पर रोक लगा रखी है और आदेशित कर रखा है कि किसी भी ब्रांडेड कंपनी की दवाओं का नाम ना लिखा जाए बल्कि उस दवा के फार्मूले को लिखा जाए । जिससे कि मरीज किसी भी कंपनी की दवा खरीद सके। परंतु कमीशन खोरी के चलते डॉक्टर पर्चो पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं के नाम ही नही लिख रहे हैं बल्कि अस्पताल के बाहर किस दुकान पर दवाएं मिलेंगी जा भी बता देते हैं।आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जहां लगातार शिकायतों के बाद वरिष्ठ चिकित्सकों में कुछ सुधार आया है परंतु हाल ही में कार्यभार संभाल रहे जिला अस्पताल के चिकित्सकों ने तो जैसे अपनी पढ़ाई का पूरा खर्च इसी अस्पताल से चुकाने का प्रण कर रखा है।अस्पताल में कमीशन की दवाएं लिखने के लिए बकायदा चिकित्सक मुस्तैद दिखाई देते हैं। यहां तक कि कुछ चिकित्सकों ने तो दवा दलालों को ही अपने कक्ष का इंचार्ज बना दिया है । जो अस्पताल खुलते ही डॉक्टर के कमरे में उपस्थित हो जाते हैं और खुद मरीजों को अपने हाथों से दवाई लिखकर पर्चियां थमा देते हैं । ऐसा नहीं है कि इस कमीशन खोरी की जानकारी अस्पताल के मुख्य सर्वे सर्वा चिकित्सा अधीक्षक को नहीं है। बल्कि 10 वर्षों से ज्यादा समय तक जिला अस्पताल में अपनी सेवाएं दे चुके डॉ एनके श्रीवास्तव को इन सब की भलीभांति जानकारी है परंतु अंत में यही कहा जा सकता है कि जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का । यही कारण है कि अस्पताल में मरीजों का दवाओं के नाम पर आर्थिक शोषण हो रहा है और सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बेहतर सुविधा देने का दावा कर रही है । लेकिन सारी सुविधाएं जिला अस्पताल में आकर समाप्त हो जाती है और इस सब का जिम्मेदार कौन है ? यह बताने की आवश्यकता नहीं है जिस किसी का भी वास्ता एक बार भी जिला चिकित्सालय से पड़ा है । उसने पूरे अस्पताल की जन्म कुंडली जान ली है परंतु जिन को कार्रवाई करनी है वह सालों से जमे होने के बाद भी आज तक केवल शिकायतकर्ता को ही खोज रहे हैं ।

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