आज जो लिख रहा हूँ कड़वा सच लिख रहा हूँ कुछ लोगो को ये अच्छा नही लगे पर कलम का तो काम ही है सच लिखना… जनपद महराजगंज के कुछ दलाल पत्रकारिता के खिलाफ एक सच्चाई लिख रहा हूँ जिस तरह से जनपद महराजगंज में पत्रकारिता को एक व्यवसाय का रूप दिया जा रहा है जिस तरह से उसे कुछ लोग अपने स्वार्थ हित हेतु अधिकारियों की दलाली कर रहे है उनके खिलाफ डाक टाइम्स न्यूज चैनल०प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से एक मुहिम ….पत्रकारों दलाली छोड़ो या दलालों पत्रकारिता छोड़ो…
1 min readमहराजगंज/उत्तर प्रदेश
ब्यूरो चीफ/भानु प्रताप तिवारी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश : (जनपद महराजगंज):- पेशेवर व धंधेबाज पत्रकार जब भी चाहे जिससे जहां से कुछ प्राप्ति संभव हो, सम्मान या पुरस्कार मिलना संभावित हो, उसी के चरण चुम्बन व चाटुकारिता व चापलूसी करने में सदा ही कर्तव्यरत रह नतमस्तक रहते हैं। इन्हें काफी कुछ मिलता है ऐसे दलाल पत्रकार विभिन्न सरकारी व् प्रशासनिक अधिकारियों के आफिसो में चटनी चाट चाटते और उनकी दलाली करते पुलिस स्टेशनों और दूसरे विभागों में देखे जा सकते हैं।ये दलाल दिन भर वहीं उनके दोने पत्तल और चाय की प्याली चाटते नजर आते हैं, और उनके इशारे पर खुद को असली बाकी अच्छे पत्रकारों को फर्जी तक का लेबल देंने में भी नहीं चूकते, जिसके विरूद्ध उनकी कलम चलेगी। उस पर व उसके परिवार पर जुल्म और अत्याचार का कहर न केवल उधर से टूटेगा। बल्कि, इस देश में जहां बेईमानी, झूठ, फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार, का साम्राज्य चहुंओर फैला हुआ है। वहां उन्हें सताया जाता है कि या तो वे खुद ही आत्महत्या कर लें या लिखना बंद कर दें।पत्रकारिता छोड़ दें। या उनकी सीधे हत्या ही करवा दी जाती है।उनकी कलम के चारों ओर खौफ, आतंक व दहशत का जाल पसरा रहता है। पल-पल मिलती धमकियां, कभी जान से मारने की धमकियां, और मजे की बात यह कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं, कोई कार्यवाही नहीं शायद आपको ऐसे पत्रकारों के लिये इनको सताने में, इनका गरीब होना, कमजोर होना, छोटा होना पत्रकारिता पेशा या व्यवसाय नहीं, एक मिशन है,इज्जत और कार्यवाही पत्रकार की बुलंद कलम कराती है। पत्रकारिता की चर्चा, पत्रकारों की चर्चा, विशेषकर आज कोई सम्मानित कर रहा है, तो कोई किसी को अपमानित कर रहा है। जैसे कि पत्रकार या तो पुण्य धर्म कर रहा है या घोर अपराध कर रहा है।आज के वक्त में किसी ईमानदार व सच्चे पत्रकार का कलम चलाना बेहद दूभर है। विशेषकर सोशल मीडिया के जमाने में तो यह तकरीबन नामुमकिन सा ही है। एक पत्रकार की परिभाषा बड़ी व्यापक होतीं है।जिसे व्यक्त करना या परिभाषा के दायरे में बांधना लगभग नामुकिन सा है।भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की जो भूमिका रही। वह उन क्रातिकारियों के बलिदानों से कहीं ज्यादा ऊपर और अव्वल है। जो क्रांति करते थें, और पत्रकार अपना सब कुछ दांव पर लगा कर उनके समाचार व खबरें फैलाने का काम करके जनता में जागरूकता व उत्साह भरा करते थें।आज की पत्रकारिता कुछ अलग किस्म की हैं आज पत्रकारिता वर्गवार पत्रकारिता की जाने लगी है। पहले जहां गरीबी से जमीनी मिट्टी से कलम निकल कर चलती और सच को बयां करने में अंग्रेजी हुकूमत से सीधी टकराती कलम व जमीन देश, अपनी मिट्टी, मातृभूमि के लिये समर्पित कलम चलाने वाले वे पत्रकार जो कभी किसी सम्मान, पुरस्कार, वेतन, पारिश्रामिक या प्राप्ति की आकांक्षा व इच्छा न रख कर केवल अपना काम करते हैं, केवल सच बोलते हैं, सच लिखते हैं, उनके लेखन में ईमानदारी रहती है और वे सारे लोभ लालचों से दूर,अपना काम करते हैं। अब तो चुम्बन व चाटुकारिता व चापलूसी करने में सदा ही कर्तव्यरत रह नतमस्तक रहते है। जिन्हें पैसे के लिये या केवल सम्मान व पुरूस्कार के लिये ही फिल्म लिखना आता है। चौथे किस्म की पत्रकारिता का वर्ग एक रैकेट व एक दलाल के रूप में काम करता है। इस वर्ग में हर उमर से लेकर, दौलत का अंबार परोस कर, कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में असल पत्रकारिता या असल पत्रकारों की मेहनत मिशन व मशक्कत के साथ उनकी इज्जत और उन्हे मिलने वाला धन या सहायता हड़प जाते हैं। मगर किसे अधिमान्यता दिलानी है कार्यालयों तक इनका माया जाल हर जगह फैला रहता है। भ्रष्टाचार ऐसा कौन-सा कार्यालय है, जहां नहीं चलता। इसलिये इनका धंधा और पेशा बदस्तूर खुल कर चलता है। जम कर चलता है। पत्रकारों का है, जो पहले वाले किस्म के वर्ग की पत्रकारिता करें तो, जिसके विरूद्ध उनकी कलम चलेगी। उस पर व उसके परिवार पर जुल्म और अत्याचार का कहर न केवल उधर से टूटेगा। बल्कि, इस देश में जहां बेईमानी, झूठ, फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार, का साम्राज्य चहुंओर फैला हुआ है। वहां उन्हें सताया जाता है कि या तो वे खुद ही आत्महत्या कर लें या लिखना बंद कर दें। पत्रकारिता छोड़ दें। या उनकी सीधे हत्या ही करवा दी जाती है इनको अपना दुश्मन खुद ही मान लेना। ये कुछ आज 5 प्रकार के वर्ग के लोग पत्रकारिता कर रहे हैं। पाठक या दर्शक बहुत आसानी से यह पहचान लेता है। कि कौन पत्रकार किस वर्ग का है। लुटिया डुबो दी बल्कि चुटिया भी उड़ा दी। और पत्रकारिता जो एक मिशन है। उसकी खाल उधेड़ कर उसमें भूसा भर कर उसे धंधा एवं पेशा बना दिया।भारत के स्वतंत्रता संग्राम के वक्त पत्रकारों की डिग्रीयां और व्यापम-फयापम नही होते थे। पर कलम थी। जिस पर कुछ लिखने की कला व महारत थी। वह जुगाड़ लगा कर पत्रकारिता करने लगता था। उसे किसी अधिमान्यता की जरूरत नहीं होती थी।उसे न अधिमान्यता मिलने का लालच लोभ उसकी कलम को कुंद व भोंथरा करता और
न अधिमान्यता चली जाने या छिन जाने का खौफ उसे सता कर चमचागिरी चाटुकारिता चापलूसी भरी कलम चलवाता। न उसे किसी सम्मान के लिये या पुरूस्कार के लिये लिखना होता था, न किसी शराब, शवाब और कवाब के लिये उसकी कलम चलती है
अब तो पत्रकारिता पर हावी हो कर हुस्न और महफिल का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है। वहीं दूसरी ओर यह कहना लाजिम है, धन्ना सेठों, पैसा लुटाने वालों, और गर्म गोश्त परोसने वाले, दलाल आज की पत्रकारिता की कमान संभाले दलाली और कमाई के समन्दर में गोते लगा रहे हैं वहीं आजकल जो बात बहुत सुनने में आती है।वह पत्रकारों के लिये एक वेतन आयोग बनाने और सभी पत्रकारों व गैर पत्रकार कर्मचारीयों को वेतन, भत्ते और पेंशन को लेकर सामने आती है। बस एक यक्ष प्रश्न मात्र इतना सा ही है कि क्या हर मीडिया का संसाधन, आय स्त्रोत और औकात, प्रसारण संख्या मिलने वाला दो नंबर के धन क्या एक बराबर है।क्या सारे मीडिया एक तुल्य आय संसाधन वाले हैं, और एकतुल्य कमाने वाले हैं, सीधा सा जवाब है, कोई मीडिया छोटा मीडिया है, मंझोला मीडिया है तो कोई एकल मीडिया है, कोई बड़ा और लंबा चौड़ा मीडिया हाउस है। कुल मिलाकर सबकी हालत और औकात एक बराबर नहीं है,कुछ असल व पात्र सुयोग्य अनुभवी पत्रकारों को उमर गुजर गई। मगर अधिमान्यता तक नहीं मिली, उनके पास देने को पैसे नहीं है, शराब शवाब और कवाब की व्यवस्था नहीं है।पत्रकारिता का पेशा और एक स्कूल चलाने का पेशा दोनों लगभग एकतुल्य मिशन हैं। मगर जो फर्क स्कूलों में है और जो वहां होता है, वही पत्रकारिता जगत का हाल है। मिशन होकर भी पत्रकारिता में पांच वर्ग हैं।इसी तरह स्कूल चलाने में भी ऐसे ही 5 वर्ग हैं। मगर स्कूलों में कभी वेतनमान आयोग बनाने और प्रावधान तय करने की बात तक नहीं होती। और उसी के समान समाज सेवा में जुटे पत्रकार न केवल कहर के तमाम प्रहारों से गुजरते हैं बल्कि जिसके विरूद्ध लिख दें उसी के दुश्मन बन जाते हैं और फिर शुरू होता है एक खेल स्कूलों में भी ऐसा खेल है मगर कुछ कहर और दुश्मनी कम है।अंत में ये ही कहना चाहेंगें पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो।